नरेंद्र मोदी को धूल चटाने की तैयारी कर रहा है ये दलित नेता, शरद पवार-मायावती को भी खतरा

Episode 26,   Aug 06, 2018, 07:39 AM

इन दिनों एनसीपी नेता शरद पवार और आरपीआई नेता प्रकाश अंबेडकर मे ठनी हुई है. अंबेडकर ने बयान दिया है कि शरद पवार को अब मराठा युवाओं ने रिटायर कर दिया है वहीं पवार ने पलटवार में कहा कि मैं लगातार 9 चुनाव जीत चुका हूं और अंबेडकर एक भी बार नहीं जीते हैं. दोनों के बीच जुबानी जंग की बड़ी वजह महाराष्ट्र में होने वाले चुनाव हैं जिसके लिए हर कोई अपने दांव खेलने में लगा हुआ है. दरअसल शरद पवार अब तक आरपीआई के रामदास अठावले का इस्तेमाल चुनाव में करते रहे हैं लेकिन पिछले चुनाव में वो बीजेपी के साथ चले गए. फिर पिछली बार कांग्रेस ने प्रकाश अंबेडकर के साथ हाथ मिला लिया और एनसीपी ने गवई कवाडे गुट के साथ. अब कांग्रेस एनसीपी मिल रही है तो पवार चाहते हैं कि प्रकाश अंबेडकर को साथ में नहीं रखा जाए. जबकि, अंबेडकर कह रहे हैं कि कांग्रेस उनके साथ और सीपीआई सपा बसपा के साथ मिलकर गठबंधन बनाए. दरअसल, अंबेडकर को लगता है कि पवार असल में अंदर ही अंदर मोदी या बीजेपी को मदद करते हैं. प्रकाश अंबेडकर हाल में भीमा-कोरेगांव की घटना पर महाराष्ट्र बंद करवा के अपनी ताकत दिखा चुके हैं लेकिन पवार ने यह कहकर उन्‍हें नजरअंदाज किया कि आंदोलन के पीछे कुछ और संगठनों का हाथ है. अंबेडकर को पवार बड़ा नेता मानने को भी तैयार नहीं हैं. वो कहते हैं कि अंबेडकर बस अकोला के नेता हैं और वो वहां भी चुनाव नहीं जीतते. जबकि गवई कवाडे गुट का आधार खत्म होने के बाद अब अंबेडकर ही खुद को गैर भाजपाई दलित खेमे का बड़ा नेता मानते हैं. शरद पवार ने अंबेडकर का विकल्प बनाने के लिए बीएसपी को महाराष्ट्र लाने की भी चाल चली है. पवार खुद मायावती से मुलाकात कर चुके हैं और कांग्रेस को भी बता रहे हैं कि मायावती को महाराष्ट्र में भले सीट नहीं मिली हो लेकिन कुल मिलाकर 16 लाख वोट मिले थे. पवार की इस चाल से अंबेडकर चिढ़ गए हैं. दरअसल, महाराष्ट्र में दलितों का वोट 7 से 14 फीसदी तक है. अलग-अलग इलाकों में खासतौर पर विदर्भ की 23 विधानसभा सीटों और मुंबई की दो लोकसभा सीटों पर ये निर्णायक है. इसलिए पवार इस बार कांग्रेस एनसीपी और बीएसपी गठजोड़ चाहते हैं ताकि कभी मौका आए तो मायावती पीएम पद के लिए पवार का नाम आगे कर सकें. अब प्रकाश अंबेडकर सीपीआई, सपा, एमआईएम और आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर एक तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद भी कर रहे हैं. लेकिन आखिर इसका फायदा अनजाने ही सही बीजेपी को ही मिलेगा.